रघु मालवीय, भोपाल
नगर निगम के पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी एवं दैनिक आलोक समाचार पत्र के मालिक मोहम्मद हमीद खान साहब का हाल ही में दुःखद निधन हो गया। यह हम सबके लिए अपूरणीय क्षति है। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे,उनका चिरायु अस्पताल में इलाज चल रहा था,जहां उन्होंने 22 जुलाई को अंतिम सांस ली। उन्हें जहांगीराबाद स्थित ज़दा कब्रिस्तान में सुपुर्देखाक किया गया,इस मौके पर उनके शुभचिंतकों में पत्रकार साथीगण और नगर निगम के कर्मचारी मौजूद रहे। हमीद खान साहब के एक बेटे समीर खान और एक बेटी फारिया खान है, हमीद खान साहब के निधन की खबर से नगर निगम सहित शहर में शोक की लहर दौड़ गई।

मो.हमीद खान साहब ने नगर निगम में लम्बे समय तक पीआरओ के पद पर रहते हुए अपनी सेवाएं दी। इस पद पर रहते हुए उन पर कई बड़ी जिम्मेदारियां थी,चाहे किसी केन्द्रीय मंत्री का नगर आगमन हो या शहर में कोई अन्य कार्यक्रम पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी इन्ही के कंधे पर होती थीं। इनके चेंबर में शहर के बड़े से लेकर सभी पत्रकारों का जमघट लगा रहता था। इनके पास कोई भी किसी भी काम के लिए आता था,कभी इनके मुंह से न नहीं निकला। बिना भेदभाव के हर वर्ग के लोगों की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे। इस दौरान उन्होंने कई गरीब बेरोजगार युवाओं को नगर निगम में नौकरी देकर उनका भविष्य संभारा। उनके दरबाजे से कोई भी गरीब जरूरतमंद कभी खाली हाथ नहीं लौटता था। वे मजलूम और बेसहारा लोगों के सच्चे मसीहा थे,इनकी मदद के लिए उनके हाथ हमेशा खुलें रहते थे। उनके चाहने वालों की शहर में लम्बी फेहरिशत है।

राजनेताओं से लेकर प्रशासनिक गलियारों में भी उनके बहुत अच्छे रिश्ते रहे हैं। नगर निगम से रिटायर होने के बाद उन्होंने भोपाल के सबसे पुराने समाचार पत्र दैनिक आलोक का प्रकाशन प्रारंभ किया। उनकी अखबार में गहरी दिलचस्पी थीं। उन्होंने दैनिक आलोक अखबार को प्रधान संपादक रहते हर हालातों में इसका प्रकाशन निरंतर जारी रखा। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा दोस्त बनाए और उन संबंधों को आखिरी दम तक निभाया भी। उनके काम करने के तरीके और उनकी ख्याति के कई रोचक किस्से है। दैनिक आलोक में लम्बे अर्से से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रेम नारायण प्रेमी हमीद साहब के बेहद करीब थे,प्रेमी जी से हमीद साहब के कई रोचक किस्से सुनने को मिला करते है। इस दौरान उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव भी आये,पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। चट्टान की तरह  उनके मजबूत इरादों के सामने कोई समस्या टिक नहीं पाती थी।

मेरा सौभाग्य रहा कि उनके समाचार पत्र में मुझे कार्य करने का मौका मिला, मुझे उनके सम्पर्क में आए लगभग 15-16 साल हो गये,इस दौरान मुझे ही नहीं संस्थान में कार्य करने वाले सभी सदस्यों की समय-समय पर  हर तरह से मदद की। मुझे याद है जब मेरे पिताजी को हार्टटेक आया था,तब मेरे घनिष्ठ मित्र और हमीद साहब के सबसे भरोसेमंद दैनिक आलोक के मैनेजर अशरफ जी ने उन्हें इस बात की जानकारी दी,इस पर हमीद साहब ने तुरंत अशरफ भाई के द्वारा उस संकट के समय मुझे आर्थिक मदद पहुंचाई,उनके इस उपकार को मै कभी भुला नहीं सकता। इसी तरह उन्होंने उनसे जुड़े लोगों की हमेशा मदद की। उनकी हर परेशानी में साथ खड़े रहे। अशरफ भाई का हमीद साहब से कितना गहरा लगाव था,इस बात का अहसास उस वक्त हुआ जब कब्रिस्तान में अशरफ भाई की आंखों से आंसू नहीं रूक रहे थे। हमीद खान साहब जैसी शख्सियत विरले ही पैदा होते है,जिन्हें भूल पाना नामुमकिन है।

Source : लेखक दैनिक अखण्ड दूत के संपादक हैं